हाइलाइट्स
नेहरू और अंबेडकर ने हिंदू निजी कानून को पारित करने के लिए कई प्रयास किए.
इसके विरोधी टस से मस नहीं हो रहे थे, ऐसा संसद में और संसद के बाहर भी हो रहा था.
हिंदू कोड बिल पर हुई बहस का मामला देश में हुए पहले आम चुनाव पर छाया रहा.
भारत को आजादी मिलने के बाद फ्रांसीसी लेखक एंड्रै मेलरौक्स ने एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से पूछा था कि स्वतंत्रता के बाद उनके लिए सबसे बड़ी समस्या क्या रही है? नेहरू ने जवाब दिया कि न्यायपूर्ण साधनों द्वारा समतामूलक समाज का निर्णय उनके लिए सबसे बड़ी समस्या रही है. उन्होंने कहा, “शायद एक धार्मिक देश में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का निर्माण भी उनके लिए समस्या रही है.”
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब, ‘भारत: गांधी के बाद’ के मुताबिक दिसंबर 1949 में संविधान पर सहमति बन जाने के बाद संविधान सभा ने एक कामचलाऊ संसद के लिए रास्ता साफ कर दिया. ये संसद तब तक काम करती, जब तक कि पहला आम चुनाव नहीं हो गया. सन 1950 और 1951 में जवाहर लाल नेहरू और कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिंदू निजी कानून को पारित करने के लिए कई प्रयास किए. लेकिन इसके विरोधी टस से मस नहीं हो रहे थे. ऐसा संसद में और संसद के बाहर भी हो रहा था.
कानून को लेकर क्या थी आपत्ति
इस कानून के खिलाफ हर तरह के तर्कों का सहारा लिया गया और कई तर्क तो ऐसे थे जो एक-दूसरे के विरोधी ही थे. पति या पत्नी में किसी भी पीड़ित पक्ष को तलाक लेने की सुविधा दिए जाने को इस विधेयक के विरोध का मुख्य केंद्रबिंदु बना दिया गया. साथ ही जो लोग इस बात का विरोध कर रहे थे कि धर्म खतरे में है, उनकी वास्तविक आपत्ति इस बात पर थी कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार कैसे दिया जा सकता है?
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रूढ़िवादी सदस्यों ने क्या कहा?
कामचलाऊ संसद में रूढ़िवादी सदस्यों ने तर्क दिया कि अनंतकाल से हिंदू कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. एक सदस्य रामायण सिंह ने कहा, “हमारे देश में लोगों के कार्य और उनके कर्तव्यों का नियमन वेदों द्वारा किया जाता है.” उन्होंने कहा कि युगों तक बौद्ध, इस्लाम और ईसाइयत से चुनौतियां झेलने के बावजूद वैदिक धर्म खत्म नहीं हो पाय… वैदिक धर्म अभी भी मौजूद है. रामायण सिंह ने शिकायत की, “अब जबकि देश में पंडित नेहरू का शासन है, वैसी स्थिति में उनके प्रतिनिधि डॉ. अंबेडकर एक झटके में उन तमाम नियम कायदों का खत्म कर देना चाहते हैं जो सृष्टि की शुरुआत से चले आ रहे हैं.”
अंबेडकर ने कांग्रेस छोड़ बनाई नई पार्टी
सन 1952 के शुरुआती महीनों में हिंदू कोड बिल पर हुई बहस का मामला देश के पहले आम चुनाव पर छाया रहा. कांग्रेस द्वारा उपेक्षित महसूस करने किए जाने पर डॉ. अंबेडकर ने इसके विरोध में अपनी अलग पार्टी अनुसूचित जाति महासंघ (शेड्यूल कास्ट फेडरेशन) की स्थापना की. जहां तक पीएम नेहरू की बात थी, उनके निर्वाचन क्षेत्र इलाहाबाद-जौनपुर में उनका सामना हिंदू कोड बिल के विरोधी नेता से था. उस नेता का नाम था दत्त ब्रह्मचारी, वो एक साधु थे और ब्रह्मचारी भी थे. वह भगवा कपड़े पहनते थे. दत्त ब्रह्मचारी की उम्मीदवारी का जनसंघ, हिंदू महासभा और रामराज्य परिषद ने समर्थन किया.
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चुनाव में नेहरू को घेरने की कोशिश
उनके प्रचार अभियान का एकसूत्री एजेंडा था कि किसी भी कीमत पर हिंदू परंपराओं से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने एक पर्चा छपवाया जिसमें पीएम नेहरू द्व्रारा हिंदू परंपराओं से छेड़खानी की बात कही गई. उन्होंने उन्हें इन विषयों पर खुली बहस की चुनौती दी. नेहरू अपनी सीट पर भारी मतों से विजयी हुए. कांग्रेस को संसद में 364 सीटों के साथ आरामदायक बहुमत मिल गया. नेहरू की राय में यह सांप्रदायिकता के खिलाफ जनादेश था. ज्यों ही नई संसद की बैठक शुरू हुई उन्होंने फिर से हिंदू कोड बिल पेश कर दिया.
अलग-अलग विधेयक किए पेश
पहले के विरोधों को ध्यान में रखते हुए अब मूल विधेयक को कई हिस्सों में बांट दिया गया. हिंदू विवाह और तलाक, हिंदू अल्पसंख्यक और हिंदू अभिभावकत्व, हिंदू दत्तक संतान और उसकी देखरेख के संदर्भ में अलग-अलग विधेयक पेश किए गए. विधेयक के इन अलग-अलग हिस्सों में मूल एकीकृत विधेयक के प्रस्ताव के सुधार और उसके प्रेरक तत्व मौजूद थे. विधेयक में मुख्य जोर विवाद और उत्तराधिकारी को गोद लेने के संदर्भ में जाति को अप्रासंगिक बनाना, बहुविवाह को प्रतिबंधित करना, कुछ विशेष आधारों पर तलाक और विवाह विच्छेद की अनुमति देना और पति और पिता की संपत्ति में महिलाओं के अधिकारों की बढ़ोतरी करना था.
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FIRST PUBLISHED : March 11, 2024, 10:03 IST